मेहनत किसकी, मजे किसके
- Pawan Raj (filmmakerpawan@gmail.com)
- Nov 16, 2017
- 4 min read
मेरे प्यारे दोस्तों,
14 नवंबर की शाम मेरे साथ हमारे एक दोस्त मौजूद थे। आपको बताता चलूँ की हाल के कुछ महीनो में हमारे दोस्त 'श्रीमान बेचारे लाल जी' (हमारे दोस्त का नाम) के साथ बहुत बुरा हुआ है। वो सत्ता की शक्ति के नशे में चूर लोगों के चपेट में आ गए है। उस शाम बेचारे लाल अपने दिल का रोना कुछ इस तरह रो रहे थे:
बेचारेलाल बोल रहे थे कि :
- परिवारवाद को लोग और कितना बढ़ावा देंगे। कब तक अपने पूतों को दुसरे का बनाया खाना छीनकर, अपने हाथों से कॉर खिलायेंगे। किसी भी चीज को रचना या उसका सृजन करना इतना आसान है क्या? जो उसको उसके मौलिक रचनाकार से झपटकर उसका श्रेय किसी और को दे दो। अरे उसके बारे में जरा सोचो की उसपर क्या बीतती है जिसने दिन रात एक करके 'उसको' सृजित किया होगा-उसका निर्माण किया होगा। तुम इतने ओछे हो की समूह विकास का ढकोसला देकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हो।

पवन: हाँ लोग बहुत मतलबी होते है इस ज़माने में..
बेचारेलाल: मतलबी तो होते ही है साथ में दो चेहरे वाले भी होते है। सामने होते कुछ और है और अंदर होते कुछ और। और मेरा विश्वास करो ऐसे लोग किसी के होते नहीं है।
पवन: हाँ बेचारेलाल। ऐसे लोगों का कर भी क्या सकते है...
बेचारेलाल: अरे मैं उनका भरे बाजार में थू-थू करवा दूँ। सृजित रचना की मूल सामग्री तो मेरे पास ही है। शुरू से लेकर अंत तक की सारी चीज़ है मेरे पास। देरी है तो बस सम्बंधित संस्था को चिट्ठी लिखकर सारे सबूत भेजने की। फिर देखता हूँ की ये जो नकली इज्जत बनाई गई है, कब तक टिकेगी।
पवन: तब अब तक ऐसा किया क्यूँ नहीं ? तुम्हे यह काम सबसे पहले कर देना चाहिए था।
बेचारेलाल: चिट्ठी तो बहुत पहले से तैयार है। हाँ बस भेजा नहीं है क्यूँकि कुछ अपनापन था। पर अब सब कुछ बराबर हो गया है। अरे जब उनको शर्म आई नहीं किसी का हक़ छीन लेने पर तो मैं किस बिनाह पर घबराऊँ। उनके अधिकारी सुबह शाम परेशान करते थे।
पवन: परेशान? तब उस वक़्त तुम पर क्या बीत रही थी?
बेचारेलाल: बहुत ज्यादा परेशान कर रहे थे। और एक बार तो बेशर्म मास्टरमाइंड ने भी फ़ोन किया था। पूरे बीस मिनट तक बहुत खरी खोटी सुनाई थी। क्या कुछ नहीं कहा - एहसान फरामोश से लेकर मेरे माँ-पापा के बारे में। अरे मैं पूछता हूँ - तुम्हारे आँख में कितना पानी बचा है? और सुनो चिल्लाकर बातें करना मुझे भी आता है और सच कहता हूँ तुम्हारे जैसों को बहस में तो ऐसे यूँ पस्त किया है। उस पल मैं खामोश था क्यूँकि तुमने जिस माँ-बाप के लालन-पालन को गाली दी थी न, उन्हीं का ये सिखाया है की अपने से बड़ों को कभी गलत मत बोलना, इसलिए मैं चुप था वरना अभी तक हम दोनों कोर्ट में होते और तुम मुझे माफीनामा सौंप रहे होते।
पवन: अरे बेचारेलाल, तुम भावनाओं में बह रहे हो। अपने उस पल के दुःख को बताओ की क्या बीती और उसको भूलना कितना मुश्किल रहा था।
बेचारेलाल: पवन भाई, तुम्हे पता है मैंने आत्महत्या की पर्ची तैयार कर ली थी। और उसमे बस उस शख्स का नाम लिखा था जिसने मेरे अधिकारों के साथ खिलवाड़ किया है। और एक समय ऐसा आया था की मैं अपने जीवन का अंत करने वाला था। बहुत हारा-सा महसूस कर रहा था। मेरी सारी मेहनत का हकदार कोई और बनेगा मेरी सारी दुनिया पलट गई हो ऐसा लगने लगा था। वो तो भला हो उस समय मेरी माँ का फ़ोन अकस्मात आ गया और मैंने आत्महत्या करने का विचार छोड़ दिया और आज तुम्हारे घर पर बैठकर रो रहा हूँ। मेरी माँ ने मुझे दूसरा जन्म दिया है।
पवन: अरे कायर मत बनो बेचारेलाल। एक तुच्छ इंसान के लिए अपना इतना महत्वपूर्ण जीवन नहीं खत्म करते है (इस समय बेचारेलाल को मैंने गले से लगा लिया था और उसकी आँखों की अश्रुधारा मेरे जैकेट को भिगो चुकी थी), चुप हो जाओ मेरे दोस्त और देखो दुनिया तुम्हें विजेताओं की तरह स्वीकार करने को तैयार खड़ी है।
बेचारेलाल: हाँ। जिन लोगों को यह बात पता चली उन्होंने मुझे ही बधाई दी। उनके लिए मैं ही हूँ उन सारी चीज़ों का हकदार। और जिन्होंने मुझे समझा है अब तक उनका मैं शुक्रगुज़ार हूँ की उन्होंने बहुत हद तक मेरा हौसला बाँधे रखा है।
पवन: जे बात। अभी तुम्हे न जाने कितना कुछ निर्मित करना है, कितना आगे बढ़ना है। ये तो एक शुरुआत है। उनके मुँह पर अपने सफलता का तमाचा मारो।
बेचारेलाल: हाँ भाई। उतार के बाद ही चढाव आते है। और मैं कर्म में विश्वास करता हूँ। What goes around comes around, और मेरे माँ-पापा ने अपने से बड़ों से इज्जत से बात व्यवहार करना सिखलाया है तो मैं कुछ गलत बोलूँगा नहीं उनको, हालाँकि मेरे लिए अब उनका कद एक चींटी से भी छोटा हो गया है। उनका हिसाब तो भगवान करेंगे अपने तरीके से।
पवन: अंकल - आंटी को मेरा सादर प्रणाम कहना। बहुत ही अच्छे विचार लेकर आगे बढ़ रहे हो तुम। ऐसे ही आगे बढ़ते रहो।
बेचारेलाल: हाँ बस मुझे अभी भी ठेंस इस बात से लग रही है की आखिर मेरे अधिकारों के साथ ही क्यों खेला गया? अभी छोटा हूँ तो क्या...
मैं भी इंसान हूँ!
(और ऐसे कई सारे मुद्दों पर हमारी बातचीत हुई। उस रोज ये मेरे घर पर ही ठहर गए थे। तो बेचारेलाल के साथ जो अन्याय हुआ उस पर आपके क्या विचार है कृप्या अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करें, उनको अच्छा लगेगा।)
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