चाचा नेहरू का घर
- Pawan Raj (filmmakerpawan@gmail.com)
- Nov 12, 2017
- 4 min read
मेरे प्यारे दोस्तों, 14 नवंबर को हम बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू का जन्मदिन है। चाचाजी बच्चों को बहुत प्यार करते थे। ठीक वैसे ही जैसे वो राजीव और संजय को पुचकारा करते थे। आजाद भारतवर्ष के प्रथम प्रधानमंत्री होने के नाते उन्होंने इस देश को विकास के पथ की ओर अग्रसर किया। कई सारी नीतियाँ बनी, जहाँ मन में चाचाजी को हम बच्चों का ख्याल भी रहा। तभी तो, उन्होंने ऐसे जगह की परिकल्पना की जहाँ देश के हर बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। बच्चों के अंदर सृजनात्मक गुणों के बीज अंकुरित करने के लिए बाल भवन का निर्माण किया गया, जो आज देश के तमाम राज्यों में बच्चों के दूसरे घर के तौर पर जाना जाता है। तो मेरे प्यारे दोस्तों, आज हम शब्दों और तस्वीरों के माध्यम से घूमने चलेंगे 'चाचा नेहरू के घर'।

प्रधानमंत्री बनने के बाद पंडित नेहरू का निवास स्थान 'तीन मूर्ति भवन' बना। नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के दक्षिण ओर स्थित है तीन मूर्ति भवन, 1922 में इस भवन को अपना नाम मैसूर, लखनऊ और हैदराबाद राज्यों के लांसको का प्रतिन्धित्व करने वाली तीन मूर्तियों के समूह से प्राप्त हुआ। यह भवन पहले फ्लैगस्टाफ़ भवन के तौर पर जाना जाता था और इसे रोबर्ट टॉर रसेल द्वारा डिज़ाइन किया गया है।

चाचाजी के मृत्यु के बाद, भारत सरकार ने तीन मूर्ति भवन को एक स्मारक के रूप में बदलने का फैसला किया जो नेहरू की स्मृति और विरासत को कायम करेगा। 14 नवंबर, 1964 को जवाहरलाल नेहरू के 75वें जन्मदिन पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन ने औपचारिक रूप से तीनमूर्ति भवन को एक संग्रहालय और पुस्तकालय, जिसे अब नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय के रूप में जाना जाता है, के लिए राष्ट्र को समर्पित किया। तीनमूर्ति भवन परिसर में नेहरू प्लैटेनियम भी है।
तो आइये एक झलक निहारते है इस आलीशान से भवन के आभ्यंतर को...

ऊपर के फोटो में प्रवेश द्वार है, जहाँ से सभी बड़े आला-अधिकारी और माननीयगण दाखिल हुआ करते थे। परन्तु चाचाजी का काफिला मुख्य द्वार पर थमता था। आज इस दरवाज़े से आम नागरिक प्रवेश पाकर संग्रहालय देख सकते है।

इन सुनसान खड़ी सीढ़ियों को गुमनाम मत समझना, चाचाजी के जाने के बाद से इसके ऊपर का वो कदमताल भी थम-सा गया है। शाही अंदाज़ में बनायीं गए ये सीढ़ियाँ आपको पहले मंजिले की ओर नेहरू जी के और करीब ले जाएगी।

पहली मंजिल पर पहुँचने के साथ ही दाहिने ओर ये एक लम्बा सा गलियारा बना है - जो विभिन्न कमरों तक आपको ले जाता है। ऐसे कई गलियारें मौजूद है यहाँ। इन गलियारों के दोनों तरफ पुस्तक तख्ता पर कई पुरानी पर ज्ञानवर्धक किताबें रखी हुई और इसकी गरिमा बढ़ा रहे है नाना प्रकार के महान आत्माओं के चित्र एवं मूर्तियाँ।

और इन गलियारों के सहारे जो सबसे पहले कमरा आता है वो है बैठक कक्ष। इस बैठक कक्ष में हमारे भारत के ही नहीं अपितु विदेश के कई प्रमुख चाचाजी के साथ बैठका लगाते थे।
बैठक कक्ष के थोड़ा आगे जाकर सामने यह अध्ययन कक्ष है। यह अध्ययन कक्ष के साथ साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री का आंतरिक कार्यालय भी हुआ करता था, यहाँ से देश के हित में कई बड़े फैसले लिए गए है।
इसके आगे पंडित जी का शयन कक्ष आता है; वही कमरा जहाँ 27 मई,1964 को पंडित नेहरू का स्वर्गवास हो गया था। उस रोज़ शोक की बयार पुरे देश में इसी कमरे से बही थी।

आगे पंडित जी का यह गर्मी और जाड़े का पोशाक बड़े ही सजीले ढंग से रखा हुआ है। संग्राहलय की शोभा बढ़ा रहा यह 'नेहरू पोशाक' कभी चाचाजी पहना करते थे। हाँ! सब कुछ ज्यों का त्यों थाम सा दिया गया है, फिर भी उनके कोट के ऊपर की गुलाब के फूल से अब खुशबू नहीं आती।

फिर आता है यह लम्बा गलियारा, जो हमें इस इमारत के दूसरे भाग में ले जाता है। इस कॉरिडोर के सामने एक बहुत बड़ा लॉन है, जिसपर महीन-मलमल सी हरी घास दूर तक फैली है। साथ में है कई तरह के फूलों का बगिया। चाचाजी के अचकन पर गुलाब का फूल यहीं का लगता था। और यहाँ आपको भारत का राष्ट्रीय पक्षी भी अठखेलियाँ करता दिख जाएगा। भोर और साँझ की क्या खूब मनोरम वेला बनती है यहाँ।

गलियारा पार करके आप पहुँचेंगे एक बड़े से कमरे में। यहाँ भारत के स्वंत्रता संग्राम के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। विभिन्न आंदोलन के बारे में जानने के लिए मेरे मीत आप यहाँ आ सकते हैं।

इससे सटे कमरे में चाचाजी को विश्व भर से मिला सम्मान और उपहार रखा गया है। एक से बढ़कर एक कलाकृतियाँ एवं उपहारों का जमघट है यहाँ।

1942-46 में महाराष्ट्र के अहमदनगर किले में अपने कारावास के दौरान प्रथम प्रधानमंत्री ने 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' या 'भारत एक खोज' लिखी थी। यह किताब भारतीय इतिहास पर उत्कृष्ट आधुनिक कार्यों में से एक माना जाता है। नेहरू संग्रहालय में चाचाजी के हाथों द्वारा लिखी इस किताब की असली प्रति यहाँ रखी हुई है।

ओह! ये शख्श? ये श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के कमरे की तस्वीर ले रहे है।

1947 से 1964 तक श्रीमती इंदिरा गाँधी अपने पिता नेहरू के साथ तीनमूर्ति भवन में ही रहती थी। तब चाचाजी की बेटी, चाचाजी की निजी सहायक एवं परिचारिका के तौर पर सेवा करती थी।

हमारे महान शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ ही चंद्रशेखर आजाद को भी यहाँ एक छोटा कमरा समर्पित है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू का यह घर काफी बड़ा है। इतिहास से जुड़ी कई नायब चीज़ों को यहाँ सुरक्षित रखा गया है। यहाँ चाचाजी को लेकर कई यादें जुड़ी है। अपने भारत के आधुनिक इतिहास को देखना-समझना और उन कमरों में टहलना जहाँ कभी इतने बड़े नेता रहा करते थे, ये अनुभव शब्दों में पिरों पाना मेरे लिए कहीं कठिन है। अपने जान से प्यारे देश के इतिहास को जानने के क्रम के एक बार हम सबको यहाँ जरूर आना चाहिए।

जाते-जाते तीन मूर्ति भवन के बाहर पत्थर के बड़े से शिले पर चाचाजी का 14 अगस्त, 1947 की रात को दिया वो ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी' लिखा है।
पर एक सवाल पूछना यह रह गया की हर कमरों में पंखा चलने के पीछे का क्या कारण है, जबकि वहाँ कोई रहता भी नहीं है।
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हैप्पी बर्थडे चाचाजी !
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