कर्नाटक में कड़ी चुनौती
- Pawan Raj (filmmakerpawan@gmail.com)
- Apr 27, 2018
- 2 min read
"ये चुनाव नहीं आसान बस इतना समझ लीजै,
224 सीट है और जीतकर सरकार बनाना है।"
महान शायर जिगर मुरादाबादी के शायरी को इम्प्रोवाइज़ करके अगर कर्नाटक विधानसभा 2018 के परिपेक्ष्य में रखे तो बात बिल्कुल सटीक बैठती है। कर्नाटक राज्य में आगामी 12 मई से 15 मई 2018 तक चुनाव आयोग ने विधानसभा की सीटों पर चुनाव की घोषणा की है। इस चुनाव को कई पार्टियाँ 2019 के लोकसभा चुनाव के मॉक टेस्ट की तरह देख रही है; वहीं कई क्षेत्रीय पार्टियाँ सत्ता में आने के सुहावने सपने संजो रही है।

चित्रण: इंडियन एक्सप्रेस
इस वर्ष होने वाले 224 सीटों के चुनाव में कुल 1110 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमायेंगे। न्यूज़ एजेंसी ए.एन.आई के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी ने अपने 93, कांग्रेस ने 92, जनता दल (सेक्युलर) ने 89, सीपीआई (मार्क्सिस्ट) ने 7, बसपा और एनसीपी ने अपने 3-3 उम्मीदवार मैदान में उतारा है। इसके साथ ही 339 उम्मीदवार अन्य क्षेत्रीय पंजीकृत पार्टी के अथवा 484 स्वतंत्र उम्मीदवार है।

कर्नाटक की जनता के पास इस बार अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए कई विकल्प मौजूद है। जो जाहिर तौर पर दिल्ली में बैठे नेताओं के चिंता का एक बड़ा कारण बना हुआ है। वैसे विभिन्न तरह के एग्जिट पोल्स भाजपा और कांग्रेस को ही अपने हिसाब से सीट मिलने का अनुमान लगा रहे है। फिर भी किसी एक को बहुमत मिलना मुश्किल दिख रहा है। नए आये उम्मीदवार इसके पीछे का एक सबसे बड़ा कारण है।। इससे कई बड़े राजनीतिक पार्टियों के वोट प्रतिशत में भारी गिरावट आ सकती है।
हाल ही में एक न्यूज़ चैनल को दिए गए साक्षात्कार में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के तेवर देखकर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है की बीजेपी गठबंधन की सरकार बनाना चाहती है। उन्होंने बार बार पूर्ण बहुमत की बात कही। अब देखना यह है की विजय रथ पर सवार भाजपा को कांग्रेस और उसके साथ जुडी अन्य दल राहुल गाँधी के नेतृत्व में रोक पाती है की नहीं।
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